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धर्म हो या राजसत्ता…पंचपुरी के संतों की हमेशा रही महत्वपूर्ण भूमिका

पंचपुरी हमेशा धर्म और राजसत्ता को कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। यहां के संत, संंन्यासी, अखाड़े व आश्रम के परमाध्यक्ष भी कई राजनीतिक दलों की नैया पार करते हैं। शरण में आने वाले दलों में किसी को राजसत्ता मिली तो किसी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की। कालांतर में इसका उदाहरण मिलता रहा है।

सनातन संस्कृति के विभिन्न मुद्दों को लेकर धर्मनगरी के संतों ने गंगा की अविरल धारा के समान लहरों को भी जन्म दिया है। जिससे देश के बड़े राजनीतिक दलों को उसका भरपूर लाभ मिला। केंद्र या राज्य दोनों की सत्ता में काबिज होने वाले कई दलों ने समय-समय पर संत समाज से प्रेरित लहर का लाभ भी लिया। यहां शरणागत होने वाले वंचित या निराश होकर नहीं गए।

साल दर साल व्यापक होता गया स्वरूप

सनातन संस्कृति के साधकों की बड़ी तपस्थली के रूप में हरिद्वार लोकसभा का साल-दर साल विस्तार होता गया। इस जिले में प्रदेश में सर्वाधिक आबादी होने से सर्वाधिक मतदाता भी हैं। यहीं से धर्मसत्ता के लिए भी कई बार रणनीति तय की गई। इसलिए बड़े राजनीतिक दलों से लेकर उनके अनुषांगिक संगठनों का पंचपुरी से विशेष लगाव रहता है। इसका जीवंत उदाहरण रहा है कि हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में लगातार छह बार भाजपा को जीत मिली। वहीं तीन बार कांग्रेस को भी मौका मिला। सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर राजेंद्र बाड़ी ने भी स्थानीय मुद्दे को छू दिया और देश के बड़े सदन में पहुंच गए थे।

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