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देहदान…यादों में जिंदा रहेगी ढाई दिन की सरस्वती, संग्रहालय में रखा जाएगा शव, भावुक हुआ परिवार

बच्ची का शव कॉलेज संग्रहालय में रखा जाएगा। शव को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए उस पर थर्मालीन तरल का लेप लगाया जाएगा।

Dehradun News Family donated body of their two and half day old daughter Saraswati will be kept in museum

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दून मेडिकल कॉलेज में बुधवार को ढाई दिन की बच्ची का देहदान किया गया। दिवंगत बच्ची का शव पिता राममेहर की मौजूदगी में मेडिकल कॉलेज के एनाटाॅमी विभाग को सौंपा गया। चिकित्सकों के मुताबिक देश में यह पहला अवसर है, जब मात्र ढाई दिन की उम्र में ही किसी दिवंगत बच्चे का देहदान किया गया है।

दून मेडिकल कॉलेज के एनाटाॅमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत ने बताया कि बच्ची का शव कॉलेज संग्रहालय में रखा जाएगा। शव को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए उस पर थर्मालीन तरल का लेप लगाया जाएगा।

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हरिद्वार जिले के पुरुषोत्तम नगर निवासी राम मेहर और उनकी पत्नी मगन देवी ने समाज के सामने एक बड़ी मिसाल पेश की है। उन्हाेंने महज ढाई दिन की दिवंगत बच्ची का बुधवार सुबह दून मेडिकल कॉलेज में देहदान किया है।
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बच्ची का देहदान दधीचि देहदान समिति और मोहन फाउंडेशन के माध्यम से कराया गया है। देहदान से पूर्व समिति के सदस्यों ने बच्ची का नामकरण भी किया। दिवंगत बच्ची का नाम सरस्वती रखा गया।
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आठ दिसंबर को मगन देवी ने दून अस्पताल में दोपहर करीब साढ़े तीन बजे एक बच्ची को जन्म दिया था। अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार के मुताबिक बच्ची जन्म के समय बर्थ एसफिक्सिया नाम की बीमारी से पीड़ित थी। जन्म के बाद से वेंटिलेटर सपोर्ट पर थी। काफी प्रयासों के बाद भी बच्ची को बचाया नहीं जा सका। मंगलवार देर रात करीब 2:34 बजे बच्ची ने आखिरी सांस ली।

दून अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार के मुताबिक बर्थ एसफिक्सिया को पेरीनेटल या न्यूनेटल एसफिक्सिया भी कहा जाता है। यह बीमारी बच्चों में जन्म के समय होती है। इसमें ऑक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंचती है। इससे बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होती है। ऐसे में बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। और एसिड का स्तर बढ़ जाता है।

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