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प्रदेश में बिजली की मांग तो बढ़ी, लेकिन नहीं बढ़ पा रहा उत्पादन, हाइड्रो पावर की परियोजनाएं अधूरी

प्रदेश में बिजली की मांग के सापेक्ष उत्पादन अभी तक उत्साहजनक नहीं हो पाया है। हाइड्रो पावर की परियोजनाएं कानूनी पचड़ों में फंसने के चलते ऊर्जा प्रदेश का सपना अब तक अधूरा है। खुद ऊर्जा विभाग भी ये मानता है कि जल विद्युत परियोजनाएं अटकने से राज्य को भारी नुकसान हुआ है।

वर्षवार राज्य में बिजली का उत्पादन और मांग देखें तो स्थिति स्पष्ट होती है। 13 साल में बिजली की मांग करीब 500 करोड़ यूनिट सालाना बढ़ गई लेकिन उत्पादन वहीं का वहीं है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में ऊर्जा विभाग ने इसके पीछे मुख्य कारण जल विद्युत परियोजनाओं की चुनौती को भी बताया है। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण ने वर्ष 2010 में 1461 मेगावाट की परियोजनाएं रोक दी थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटी में 2945 मेगावाट की 24 जल विद्युत परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तरकाशी से गंगोत्री तक के क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया, जिससे यहां प्रस्तावित 1743 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाएं भी लटक गईं।

सु्प्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में वर्तमान में 70 में से 4797 मेगावाट की 44 जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगी हुई है। इस कारण राज्य को आर्थिक नुकसान हो रहा है। ऊर्जा प्रदेश की परिकल्पना धरातल पर पूरी नहीं हो रही है।

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